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दिल्ली के मराठीभाषियों और मराठी साहित्य रसिकों को इस वर्ष भी निराश होना पड़ेगा। दिल्ली में अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन कराने की योजना खटाई में पड़ती दिखाई दे रही है। अब दिल्ली की बजाय नासिक में मराठी साहित्य सम्मेलन की जगह तलाशी जा रही है। यदि नासिक में संभव नहीं हुआ तो इस साल कोरोना महामारी का हवाला देते हुए मराठी साहित्य सम्मलेन ही रद्द हो सकता है।



दिल्ली में अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन की मांग ‘सरहद’ संस्था ने की है। ‘सरहद’ के संस्थापक संजय नाहर की मांग है कि एक बार मराठी की आवाज दिल्ली में भी बुलंद होनी चाहिए। अखिल भारतीय साहित्य सम्मेलन की एक परंपरा है जहां देश के तत्कालिक मुद्दों पर हमेशा चर्चा होती है। इसलिए यह साहित्य सम्मेलन विवादों में भी आता रहा है।



इस वर्ष साहित्य सम्मेलन का स्थान निश्चित करने के लिए मराठवाड़ा साहित्य परिषद के पदाधिकारियों की अखिल भारतीय मराठी साहित्य महामंडल के अध्यक्ष कौतिकराव ठाले पाटिल, महामंत्री डॉ. दादा गोरे और प्रतिभा सर्राफ आदि पदाधिकारियों के साथ रविवार को बैठक हुई।



लेकिन ऐसे संकेत मिले है कि साहित्य सम्मेलन नासिक में ही होगा दिल्ली में नहीं। दरअसल, रविवार को साहित्य सम्मेलन का स्थान सुनिश्चित करने के लिए एक समिति भी गठित की गई है। यह समिति आगामी सात जनवरी मराठी साहित्य सम्मलेन के स्थान चयन को लेकर नासिक में बैठक करेगी। दिल्ली की बजाय नासिक में जगह के चयन के लिए बैठक का प्रस्ताव होने से ही साफ हो गया कि दिल्ली के मराठीभाषियों को साहित्य सम्मेलन के लिए अभी इंतजार करना होगा। नासिक में चर्चा के बाद दूसरे दिन आठ जनवरी को औरंगाबाद में इस समिति की बैठक होने वाली है। इसके बाद मराठी साहित्य सम्मलेन के स्थान की घोषणा की जाएगी।



महाराष्ट्र की स्थापना के बाद नहीं हुआ साहित्य सम्मेलन



संजय नाहर कहते है कि इस साल महाराष्ट्र राज्य की हीरक जयंती है। इसलिए ‘सरहद’ की चाह है कि साहित्य सम्मेलन दिल्ली में हो। महाराष्ट्र की स्थापना के बाद एक बार भी दिल्ली में साहित्य सम्मेलन नहीं हुआ। साल 1954 में मराठी साहित्य सम्मेलन हुआ था। उस समय काकासाहेब गाडगिल स्वागताध्यक्ष और लक्ष्मण शास्त्री जोशी सम्मेलनाध्यक्ष थे।



दिल्ली में रहते हैं 5 लाख मराठीभाषी



दिल्ली और आसपास के इलाकों में लगभग पांच लाख मराठीभाषी रहते हैं। नाहर का कहना है कि यह महाराष्ट्र का सम्मेलन है, किसी व्यक्ति या संस्था का नहीं। यदि अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मलेन देश की राजधानी दिल्ली में होता है तो वहां रहने वाले मराठीभाषियों के लिए खुशी की बात होगी। वैसे भी दिल्ली और महाराष्ट्र के मराठीभाषियों में काफी अंतर आ गया है। यह भावना कम होनी चाहिए।



सार



दिल्ली में अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन की मांग ‘सरहद’ संस्था ने की है। ‘सरहद’ के संस्थापक संजय नाहर की मांग है कि एक बार मराठी की आवाज दिल्ली में भी बुलंद होनी चाहिए…



विस्तार



दिल्ली के मराठीभाषियों और मराठी साहित्य रसिकों को इस वर्ष भी निराश होना पड़ेगा। दिल्ली में अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन कराने की योजना खटाई में पड़ती दिखाई दे रही है। अब दिल्ली की बजाय नासिक में मराठी साहित्य सम्मेलन की जगह तलाशी जा रही है। यदि नासिक में संभव नहीं हुआ तो इस साल कोरोना महामारी का हवाला देते हुए मराठी साहित्य सम्मलेन ही रद्द हो सकता है।



दिल्ली में अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मेलन की मांग ‘सरहद’ संस्था ने की है। ‘सरहद’ के संस्थापक संजय नाहर की मांग है कि एक बार मराठी की आवाज दिल्ली में भी बुलंद होनी चाहिए। अखिल भारतीय साहित्य सम्मेलन की एक परंपरा है जहां देश के तत्कालिक मुद्दों पर हमेशा चर्चा होती है। इसलिए यह साहित्य सम्मेलन विवादों में भी आता रहा है।



इस वर्ष साहित्य सम्मेलन का स्थान निश्चित करने के लिए मराठवाड़ा साहित्य परिषद के पदाधिकारियों की अखिल भारतीय मराठी साहित्य महामंडल के अध्यक्ष कौतिकराव ठाले पाटिल, महामंत्री डॉ. दादा गोरे और प्रतिभा सर्राफ आदि पदाधिकारियों के साथ रविवार को बैठक हुई।



लेकिन ऐसे संकेत मिले है कि साहित्य सम्मेलन नासिक में ही होगा दिल्ली में नहीं। दरअसल, रविवार को साहित्य सम्मेलन का स्थान सुनिश्चित करने के लिए एक समिति भी गठित की गई है। यह समिति आगामी सात जनवरी मराठी साहित्य सम्मलेन के स्थान चयन को लेकर नासिक में बैठक करेगी। दिल्ली की बजाय नासिक में जगह के चयन के लिए बैठक का प्रस्ताव होने से ही साफ हो गया कि दिल्ली के मराठीभाषियों को साहित्य सम्मेलन के लिए अभी इंतजार करना होगा। नासिक में चर्चा के बाद दूसरे दिन आठ जनवरी को औरंगाबाद में इस समिति की बैठक होने वाली है। इसके बाद मराठी साहित्य सम्मलेन के स्थान की घोषणा की जाएगी।



महाराष्ट्र की स्थापना के बाद नहीं हुआ साहित्य सम्मेलन



संजय नाहर कहते है कि इस साल महाराष्ट्र राज्य की हीरक जयंती है। इसलिए ‘सरहद’ की चाह है कि साहित्य सम्मेलन दिल्ली में हो। महाराष्ट्र की स्थापना के बाद एक बार भी दिल्ली में साहित्य सम्मेलन नहीं हुआ। साल 1954 में मराठी साहित्य सम्मेलन हुआ था। उस समय काकासाहेब गाडगिल स्वागताध्यक्ष और लक्ष्मण शास्त्री जोशी सम्मेलनाध्यक्ष थे।



दिल्ली में रहते हैं 5 लाख मराठीभाषी



दिल्ली और आसपास के इलाकों में लगभग पांच लाख मराठीभाषी रहते हैं। नाहर का कहना है कि यह महाराष्ट्र का सम्मेलन है, किसी व्यक्ति या संस्था का नहीं। यदि अखिल भारतीय मराठी साहित्य सम्मलेन देश की राजधानी दिल्ली में होता है तो वहां रहने वाले मराठीभाषियों के लिए खुशी की बात होगी। वैसे भी दिल्ली और महाराष्ट्र के मराठीभाषियों में काफी अंतर आ गया है। यह भावना कम होनी चाहिए।







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